जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीश तिहुँ लोक उजागर॥2॥

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राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवन सुत नामा॥3॥

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कंचन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुण्डल कुञ्चित केसा॥5॥

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हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥6॥

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शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥7॥

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विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥8॥

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प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥9॥

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सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥10॥

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भीम रूप धरि अस ुर दल गिरावा। रोग दोष जाके निकट न आवा॥11॥

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बैद्यनाथ तब निरंजन घावा। रावण दानव दैत्य असुर सब नावा॥12॥

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जपत निरंतर हनुमत बीरा। संकट तें हनुमान छुड़ावैरा॥13॥

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मन क्रम वचन ध्यान जो लावै। जीते शत बार पठवावै॥14॥

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जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीसा॥15॥

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तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा॥16॥

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दोहा: पवनतनय संकट हरण मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

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पवनतनय संकट हरण मंगल मूरति रूप। राम लखन सीता सहित हृदय बसहु सुर भूप॥

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अर्थ: धूलि मगन जनम होम करहु बड़े अज्ञानी। ताके तन निरोगी जीवन धन्य जानी॥1॥ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥2॥ राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥3॥ महावीर विक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी॥4॥ कञ्चन बरन बिराज सुबेसा। कानन कुंडल कुंचित केसा॥5॥ हाथ बज्र औ ध्वजा बिराजै। काँधे मूँज जनेऊ साजै॥6॥ शंकर सुवन केसरी नंदन। तेज प्रताप महा जग बंदन॥7॥ विद्यावान गुनी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर॥8॥ प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया॥9॥ सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा॥10॥ भीम रूप धरि असुर सँहारे। रामचन्द्र के काज सवारे॥11॥ लाय सजीवन लखन जियाये। श्री रघुबीर हरषि उर लाये

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